प्रिय सखी

        

         तेरा होना मेरे संग क्या किसी फरिश्ते से कम है 

अब अक्सर ही देखती हूं खुद को ऐसा जिसमे मेरी आंखें नम है ।

जिंदगी के हर पहलू मे मेरे संग रहेगी क्या ? 

जो मै लड़खड़ाऊं किसी पल मे तो मुझको संभाल लेगी क्या? 

कहते है पल पल को जोड़ कर इक कहानी बनती है 

तो क्या हर एक पल की मेरी रवानी बनी रहेगी क्या? 


वो संग मे मुस्काना मेरी खामोशियों में तेरा वो सामने से बातें बनाना 

वो कुछ गीतों की पंक्तियों को अपने ही अंदाज मे हमेशा गुनगुनाती रहेगी क्या ?


हर दिन हर पल सब नया सा है सब कुछ तेरे सामने बयां सा है

बेफिक्री के हर लम्हे में यूं लंबी सी मुलाकात

 ढलती शाम के सुनहरे पहरे में हर बार करती रहेगी क्या?


प्रिय सखी.. तू मेरी जिंदगी में यूं ही बनी रहेगी क्या?

© Shivangi

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